इंदौर में 78 हजार में से 130 प्रसूताओं की हर साल हो जाती है मौत, सात महीनों में ही 66 ने दम तोड़ा

मातृ मृत्यु दर के 2 बड़े कारण सरकारी अस्पतालाें से संसाधनाें के अभाव में रैफर करना और एनीमिया


सैंपल रजिस्ट्रेशन हेल्थ सर्वे असम और उप्र के बाद मप्र देश का तीसरा राज्य, जहां सर्वाधिक है मातृ मृत्यु दर


 

नीता सिसौदिया.इंदाैर . प्रदेश सरकार हर साल हजारों कराेड़ रुपए नवजात और गर्भवती महिलाओं व प्रसूताअाें के स्वास्थ्य पर खर्च करती है, लेकिन सैंपल रजिस्ट्रेशन हेल्थ  सर्वे की ताजा रिपोर्ट (वर्ष 2015-17) चिंतित करने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में एक लाख गर्भवती महिलाओं व प्रसूताओं में से 188 की मौत हो जाती है। दुखद पहलू यह है कि पिछली रिपोर्ट (वर्ष 2014-15) की तुलना में इसमें 15 मौतों की बढ़ोतरी हो गई।


असम और उप्र के बाद मप्र देश का तीसरा राज्य है, जहां मातृ मृत्यु दर सर्वाधिक है। पिछली बार पांचवें नंबर पर था। इंदौर जिले में इस साल अप्रैल से अक्टूबर तक 66 गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर्ज की गई। दरअसल गर्भपात या बच्चे के जन्म के 42 दिन के भीतर महिला की मौत हो जाती है तो उसे मातृ मृत्यु माना जाता है। मातृ मृत्यु दर की एक प्रमुख वजह सरकारी अस्पतालाें से संसाधनाें के अभाव में महिलाअाें काे दूसरे अस्पताल रैफर करना है।  एनीमिया भी मातृ मृत्यु की प्रमुख वजह है।
 


इंदाैर में प्रति लाख के बजाय 78 हजार के हिसाब से मातृ मृत्यु दर की गणना


सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के मुताबिक देश में मातृ मृत्यु दर में 26.9 प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन मप्र में स्थिति चिंताजनक है। वर्ष 2011-13 के डाटा के अनुसार मप्र में मातृ मृत्यु दर 221 प्रति लाख थी, जो 2014-15 में 173 प्रति लाख हो गई। यानी, 48 की कमी। हालांकि वर्ष 2015-17 की रिपोर्ट में यह संख्या 188 प्रति लाख हो गई है। यानी, 15 मौतों का इजाफा।


इंदौर जिले की बात करें तो यहां सरकारी और निजी अस्पतालों में एक साल में 75 से 80 हजार प्रसूति होती है। इसलिए अधिकारियों का कहना है कि प्रति लाख के बजाय 78 हजार के हिसाब से मातृ मृत्यु दर निकाली जा रही है। 2015-17 के सर्वे के मुताबिक, इंदौर में मातृ मृत्यु दर 164 प्रति लाख थी, लेकिन 78 हजार प्रसूति के आधार पर 130 प्रसूताओं की मौत संभावित मानी जा रही है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. पूर्णिमा गडरिया बताती हैं कि इस साल अप्रैल से अक्टूबर तक 66 गर्भवती महिलाओं की मृत्यु होने की जानकारी मिली है। 


एंटीनेटल चेकअप की तुलना में 57 फीसदी प्रसव ही हो रहे हैं सरकारी अस्पतालों में
पिछली बार स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की संभागीय बैठक में भी यह बात सामने आई थी कि जितनी महिलाएं एंटीनेटल चेकअप (प्रसव पूर्व जांच) के लिए अस्पतालों में जाती हैं, उस अनुपात में प्रसूति नहीं हो रही है। कुल एएनसी की तुलना में 57 प्रतिशत संस्थागत प्रसव ही हो रहे हैं। इस पर भी चिंता जताई गई।


30% प्रसूति केस रैफर किए जा रहे हैं सरकारी अस्पतालों से
सरकारी अस्पतालों से सात से 30 प्रतिशत प्रसूति केस दूसरे अस्पतालों को रैफर किए जाते हैं। इस साल अप्रैल से जून तक इंदाैर संभाग के आठाें जिलों के जिला अस्पतालों से 605, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से 2121 और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से 3437 गर्भवती महिलाओं को रैफर किया गया। किसी भी जिला अस्पताल में ऑबस्ट्रेक्टिव आईसीयू नहीं है। इस तरह के आईसीयू में गंभीर हालत वाली गर्भवती महिलाओं को रखा जाता है।